वंचित समाज पार्टी के नेता ललित मोहन सिंह ने किसानों की व्यथा बताने वाला लिखा ये लेख
वंचित समाज पार्टी के नेता और चुनाव अभियान समिति के प्रमुख ललित मोहन सिंह ने किसानों की व्यथा बताने के लिए एक लेख लिखा है. उन्होंने कहा कि किसानों के बही खाते में नफा-नुकसान का कोई कॉलम ही नहीं होता, आखिरकार ऑडिट करने कौन आएगा, उसके खाते में एक ही कॉलम है घाटे वाला क्योंकि उसके उत्पाद का एमएसपी यानि कि न्यूनतम समर्थन मूल्य, तय करने वाले कभी खेतों की मेड़ों पर नहीं घूमे, कोई जोंक भरे, उनकी परवाह किए बिना पानी कीचड़ में खड़े होकर धान की रोपाई नहीं करवाई. वैसे अधिकारी गन भाव तय करते हैं मानो किसानों को मुआवजा, मेहनत की नहीं, बल्कि खैरात बांट रहे हों.
ललित मोहन सिंह ने कहा कि लगभग 50 साल पहले सोना ₹200 प्रति 10 ग्राम था, यानी 20 का 1 ग्राम और धान, जिसे आज के नौजवान PADDY से समझेंगे, का प्रति किलोग्राम मूल्य रहा होगा मात्र 0.25. 1 ग्राम सोने के भाव और 1 किलोग्राम धान के भाव में 1ः80 का अन्तर था. अखबारों के हवाले आज सोना का भाव है लगभग 4615 प्रति ग्राम और धान मात्र 18.15/- प्रति किलो.
इन पचास वर्षों में रेंग रेंग कर 0.25 से 18.15/- का सफर तय कर पाया है किसानों की उत्पाद, और उसमें भी सेंध मारने दो पैरों वाले चूहे नजरें जमाए बैठे हैं. यह पचास वर्षों के सफर की औसत देखने पर पता चलेगा कि हमें हमारे मेहनत के बदले प्रति वर्ष 0.18 या सालाना मात्र 18 पैसे की ही बढ़ोतरी प्रति किलोग्राम मिली अथवा इजाफा मिला.
इसी दौरान सोना का भाव सालाना 90 प्रति ग्राम. फिर भी हम लानत नहीं भेजते हैं, शोर तक नहीं करते, सुनेगा कौन. हमारी बात सुनने का एक वकील भी 50,000/- मांगेगा. हम हैं कि खुद भूखे रह भी जाएं पर हम पर आश्रित धरती के जन मानस को खिलाने का सुख वहन करेंगे, और भूखा कैसे रहने देंगे.
उन्होंने कहा हमारे बिहार में, बहुतायत में, संतोष धन पाया जाता है, कोई किसान खुदकुशी नहीं करता, वह जानता है कि जो होता है अच्छा होता है. दिनकर की कविता की पंक्तियां को अंगोछा के किनारे खैनी के साथ गांठ बांध, (दिनकर जी को खैनी बहुत प्रिय था), चलता है ,“सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें आगे क्या होता है।“ और “होहियें वही जे राम रुचि राखा।“
क्या वे वास्तव में न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करते हैं, जिसका अर्थ होना चाहिए कि इस मूल्य से नीचे कोई भी ग्राहक खरीद नहीं सकता हो, पर असलियत में यह MSP का मायने है MAXIMUM SELLING PRICE अर्थात् अधिकतम विक्रय मूल्य. किसानों को किसी भी हाल में इस भाव से ऊपर माल विक्रय करने की अनुमति कदाचित नहीं है.
सरकारी खरीद तो हमारे यहां जनाब एक मज़ाक सा बन कर रह गया है. जो भी अधिकारी को खरीदने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है वह मिल मालिकों से तथा पैक्स के सभापति की मिली भगत में कम-से-कम 3.00 से लेकर 3.50 प्रति किलो ग्राम या 300/- से 350/- प्रति क्विंटल चाहिए चाहिए. जिस फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1500/- प्रति क्विंटल रखा गया हो उस फसल का 20 से 25% तो सरकार के अधिकारियों को जाता है. और किसानों को तत्तकाल भुगतान के विपरीत कई महीने बाद पैसे मिलते हैं.
इसलिए जो किसान भाई ऊपर बोल रहे हैं वे अतिष्योक्ति नहीं अपितु बहुत ही शांत स्वर में बोल रहे हैं. हम किसानों की मजबूरी और मजबूती भी यही है कि हम हर साल उपजायेंगे और हर बार मुस्कराहट के साथ घाटा सहेंगे क्योंकि यही हमारा भाग्य है, यह ही हमारी नियति और यही हमारा प्रारब्ध.
हम हैं तो खुदा भी है नहीं तो इबादत करेगा कौन?
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